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Saturday, April 19, 2025
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दुर्गा चालीसा पाठ का शाब्दिक अर्थ: Durga Chalisa Meaning In Hindi

माता दुर्गा हिन्दुओं की एक प्रमुख आदि देवी हैं। प्रत्येक वर्ष 2 बार नवरात्रि पर्व पर माँ की विशेष रूप से आराधना करने का विधान श्रीमददेवी भागवत में किया गया है। यह नवरात्रि चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि के रूप मे जानी जाती है।
माँ दुर्गा जी की आराधना करने के लिए दुर्गा चालीसा पाठ किया जाता हैं। इस लेख के माध्यम से दुर्गा चालीसा की 40 पंक्तियों के अर्थ का उल्लेख किया गया है।

क्या है दुर्गा चालीसा पाठ:

दुर्गा चालीसा पाठ माँ भगवती दुर्गा जी की स्तुति करने के लिए 40 पंक्तियों का एक संग्रह है। जिन 40 पंक्तियों में माँ दुर्गा जी की महिमा का वर्णन किया गया है।

दुर्गा चालीसा पाठ का हिन्दी अर्थ:

हिन्दुओं की आदि देवी माँ दुर्गा जी की आराधना दुर्गा चालीसा पाठ के माध्यम से की जाती है। जिसका अनुष्ठान करके माँ दुर्गा की विशेष कृपा को प्राप्त किया जाता है। दुर्गा चालीसा पाठ और उसकी एक एक पंक्ति का शाब्दिक अर्थ निम्नलिखित है-

नमो नमो दुर्गे सुखकरनी । नमो नमो अम्बे दु:खहरनी।।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी । तिहुं लोक फैली उजियारी ।।

अर्थात: सुखों को प्रदान करने वाली हे माँ दुर्गा! आपको प्रणाम है। हे माँ अम्बे! आप इस संसार में सभी के दुःखों को हर लेती हो आपके चरणों में नमन है। हे माँ! आपकी ज्योति की ऊर्जा निराकार है, जिसकी ऊर्जा तीनों लोकों में फैला हुआ है

शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।।
रूप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ।।

अर्थात: हे माँ! चंद्रमा की तरह चमकने वाला आपका मुखमंडल अत्यंत विशाल है। आपके नेत्र लाल और आपकी भौहें विकराल हैं। हे माँ! आपका यह रूप बहुत ही सुहावना है जिसका दर्शन करने से सुख की प्राप्ति होती है।

तुम संसार शक्तिलय कीन्हां । पालन हेतु अन्न-धन दीन्हां ।।
अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ।।

अर्थात: हे माँ दुर्गा! इस संसार में जितनी भी शक्तियां हैं, वह सभी आप में विराजमान हैं। हे माँ! आपने ही इस संसार का पालन करने के लिए अपनी योगमाया से विभिन्न प्रकार के अन्न और धन दोनों प्रदान करती हैं। अन्नपूर्णा होकर आप इस संसार को पालती हैं। आप अत्यंत सुंदर हैं।

प्रलयकाल सब नाशनहारी । तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ।।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा-विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ।।

अर्थात: हे माँ! प्रलय के समय आप प्रलयकारी शक्तियों का नाश करती हैं। आप माँ गौरी स्वरूप हैं जो भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। भगवान शिव के साथ साथ सभी योगी आपका गुणगान करते हैं और देवाधि देव ब्रम्हा, विष्णु आपका ही नित्यप्रति ध्यान करते हैं।

रूप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा ।।
धरा रूप नरसिंह को अम्बा । परगट भई फाड़कर खम्भा ।।

अर्थात: हे माँ ! आप ही माँ सरस्वती का रूप धारण कर ऋषि और मुनियों के उद्धार के लिए उन्हे सद्बुद्धि प्रदान करती हैं। हे माँ! जब हिरण्यकश्यप नामक राक्षस का अत्याचार बढ़ गया तब आपने खम्भे को चीरते हुए नरसिंह रूप में अवतार लिया था।

रक्षा करि प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं । श्री नारायण अंग समाहीं ।।

अर्थात: हे माँ! आपने ही नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप को स्वर्ग भेजकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी। आप ही माँ लक्ष्मी रूप को धारण करती हैं और श्री नारायण के अंग में समाई हुई हैं।

क्षीर सिंधु में करत विलासा । दयासिंधु दीजै मन आसा ।।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ।।

अर्थात: हे माँ! आप ही क्षीर सागर में वास करती हो, हे माँ! आप दया की सागर हो, मेरे मन की आश पूर्ण करें माँ। हे माँ! हिंगलाज की माँ भवानी आप ही हैं, आपकी महिमा अनंत हैं जिसकी व्याख्या शब्दों से नहीं की जा सकती है।

मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ।।
श्री भैरव तारा जगतारिणी । छिन्न भाल भव दुःखनिवारिणी ।।

अर्थात: हे माँ! आप ही मातंगी, धुमावती, भुवनेश्वरी और माँ बगला भी आप ही हैं जो सुख प्रदान करती हैं। हे माँ! आप ही श्री भैरवी हैं और सारे जग की तारनहार माँ तारा भी आप ही हैं और आप ही दुःखों का निवारण करने वाली माँ छिन्नमस्ता हैं।

केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ।।
कर में खप्पर खड्ग विराजै । जाको देख काल डर भाजै ।।

अर्थात: हे माँ! आप शेर की सवारी करती हैं और आपकी शेवक शक्ति महावीर बजरंगबली हनुमान जी आपकी अगुवानी करते है। हे माँ! आप अपने हाथों खप्पड़ और तलवार धारण करती हैं जिसे देखकर काल (अर्थात मृत्यु) भी डर कर भाग जाता है

सोहै अस्त्र और त्रियशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ।।
नगरकोट में तुम्हीं विराजत । तिहुं लोक में डंका बाजत।।

अर्थात: हे माँ भवानी! आप अस्त्र शस्त्र और त्रिशूल को भी धारण करती हैं जिसे देखकर शत्रु भय से काँपने लगते हैं। हे माँ आप ही नगरकोट में विराजमान हैं और तीनों लोकों में आपका ही गुणगान होता है।

शुम्भ-निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ।।
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ।।

रूप कराल काली को धारा । सेन सहित तुम तेहि संहारा ।।
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब । भई सहाय मातु तुम तब-तब ।।

अर्थात: हे माँ! भवानी आपने ही शुम्भ-निशुम्भ दानवों का अंत किया था और आपने ही अशंख्य रक्तबीजों का संहार किया। हे माँ! महिषाशुर नामक राक्षस बहुत ही अभिमानी था जिसके पापों से धरती पर बहुत बोझ बढ़ गया था तब आपने माँ काली का विकराल रूप धारण किया और महिषासुर और उसकी विशाल सेना का संहार कर जीवों की रक्षा की। हे माँ! जब जब संतों (सत्य का साथ देने वाले अर्थात सज्जन व्यक्तियों)पर संकट आया तब तब आप ही उनकी सहायक हुई हैं।

अमरपुरी औरों सब लोका । तव महिमा सब रहें अशोका ।।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ।।

अर्थात: हे माँ! आप की ही कृपा से अपरपुरी और सभी लोक शोक से बहुत दूर हैं। हे माँ! आपकी दिव्य दृष्टि हमेशा सभी पर बनी रहती है और सभी नर नारी आपकी सदैव पूजन करते हैं।

प्रेम भक्ति से जो नर गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवै ।।
ध्यावै तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताको छुटि जाई ।।

अर्थात: हे माँ प्रेम और भक्ति से जो भी आपके यश का गुणगान करते हैं उन्हे दुःख, दरिद्रता उसके पास भी नहीं आती है। जो भी सच्चे मन से आपका ध्यान करता है वो जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाते हैं अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं।

योगी-सुर-मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ।।
शंकर आचारज तप कीन्हों । काम-क्रोध जीति सब लीन्हों ।।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ।।
शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछितायो ।।

अर्थात: योगी, देवता और ऋषि मुनि सभी अपनी साधना की सिद्धि के लिए आपकी ही आराधना करते हैं क्योंकि आपकी शक्ति के बिना योग (आत्मा और परमसत्ता का मिलन) नहीं हो सकता है।  हे माँ! आदिगुरु शंकराचार्य ने कठिन तपस्या करके अपने काम, क्रोध, लोभ और मोह पर विजय हासिल किया। लेकिन वो दिन रात केवल भगवान शंकर का के यश का गुणगान करते थे,  हे माँ जगदम्बा भवानी! उन्होंने एक क्षण भी आपका स्मरण नहीं किया, उन्होंने आपके शक्ति रूप अर्थात आपकी महत्व को बिल्कुल भी नहीं समझा तब उनके पास पास आपकी जो भी शक्ति थी वह सब चली गई तब उन्हे बहुत पछताये।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ।।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन्ह विलम्बा ।।

अर्थात: हे माँ! आदिगुरु की शक्ति नष्ट हो गई तब पछताकर आपकी शरण लेकर आपके यश का गुणगान किया। उन्होंने आपकी जय-जयकार की तब उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ आपने बिना विलंब किए शक्तियां प्रदान कर उन्हे आशीर्वाद दिया।

मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ।।
आशा तृष्णा निपट सतावें । मोह-मदादिक सब विनसावें ।।
शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरहुँ एकचित तुम्हें भवानी ।।
करहु कृपा हे मातु दयाला । ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला ।।

अर्थात: हे माँ ! मुझे भी अनेकों कष्टों ने घेर रखा है और आपके बिना हमारे इन कष्टों का हरण कौन कर सकता है।  हे माँ! आशा, तृष्णा मुझे हरपल सताती है ये मुझे हमेशा भ्रमित करती है। हे माँ भवानी आप मेरे काम, क्रोध, लोभ , मोह अहंकार रूपी इन शत्रुओं का नाश कीजिए जिससे मैं एकाग्र मन से आपका सुमिरन कर आपका ध्यान कर सकूँ। हे माँ आप मुझपर दया करें और हमे ऋद्धि सिद्धि का वरदान देकर मेरा कल्याण करें।

जब लग जियौं दयाफल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ।।
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ।।
देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।। करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।

अर्थात: हे माँ जगदम्बा! मुझे ऐसा वरदान दो कि जब तक मैं जीवित रहूँ, तब तक आपकी कृपा का पात्र बनूँ और आपके यश का गुणगान करता रहूँ। हे माँ ! जो कोई भी इस दुर्गा चालीसा पाठ को प्रतिदिन करता है वह सभी सुखों को प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त कर लेता है। हे माँ जगदम्बा भवानी! इस देवीदास को अपनी शरण मे लेकर माँ अपनी कृपा करो माँ!, कृपा करो माँ!

दुर्गा चालीसा पाठ मधुर आवाज में सुनने के लिए इस वीडिओ को अवश्य देखें

निष्कर्ष:

श्री दुर्गा चालीसा का पाठ अति फलदायी माना जाता है। हमने आपको इस लेख में बताया कि दुर्गा चालीसा पाठ का शाब्दिक अर्थ क्या है: (Durga Chalisa Meaning In Hindi) विशेषकर नवरात्रि में दुर्गा चालीसा पाठ भक्तों को माँ जगदंबा के कृपा का पात्र बनाता है। माँ दुर्गा अपने भक्तों का सदा कल्याण करती हैं, इसीलिए इन्हे जगतजननी माँ कल्याणी भी कहा जाता है। इस दुर्गा चालीसा का श्रद्धाभाव से निरंतर पाठ करने वाला भक्त समस्त बाधाओं से मुक्त होकर सुख-शांति प्राप्त करता है।

जय माँ दुर्गा ।

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